‘‘विश्वास वह शक्ति है जिससे अँधेरे में भी प्रकाश लाया जा सकता है। ‘‘
कुछ ऐसा ही विश्वास अपने ऊपर रखने वाले हरियाणा के छात्र राहुल यादव ने हजारो नाकामियाबियों के बाद भी अपने अंदर अपने सपने को जिंदा रखा और उसे पूरा करके दिखाया। अपनी असफलताओं से सभी निराश होते है और हारकर अपना लक्ष्य हासिल करने का इरादा बदल देना तो बहुत आसान है लेकिन उन असफलताओं पर विजय पाना उतना ही मुश्किल। एक ऐसा बच्चा जो कक्षा 6 में फैल हुआ कक्षा 7 में बड़ी मुश्किल से पास हो पाया और कक्षा 8 में फिर से फैल हो गया, बड़े होकर भी असफलताओं ने उसका पीछा नहीं छोड़ा लेकिन लक्ष्य के प्रति उसकी जिद ने आज उसके डॉक्टर बनने के सपने को पूरा कर दिखाया।
राहुल ने बताया की उनके परिवार में कोई जानता भी नहीं है की नीट क्या होता है और एक सामान्य छात्र होने के कारण कभी उसने भी नहीं सोचा था की वह कोटा आकर नीट की तैयारी करेगा। फिर उसने कही से नीट के बारे में सुना और उसके बारे में पता किया, तब उसके मन में उत्साह जागृत हुआ और उसके बाद तो राहुल ने ठान लिया की अब यही उसका लक्ष्य है। वह कोटा आ गया और उसने कोटा के एक प्रतिष्ठित संसथान में दाखिला ले लिया लेकिन उस साल उसका परिणाम बिलकुल अच्छा नहीं आया उसने नीट में मात्र 325 अंक ही अर्जित किये। फिर राहुल ने ड्राप लेने का तय किया लेकिन इस बार उसने किसी दूसरे प्रतिष्ठित संसथान में दाखिला लिया लेकिन इसी के साथ राहुल गलत संगती में पड़ गया।
पढाई से तो एक दम ही उसका मन हट गया और दूसरी चीजो में उसका मन लगने लगा। उसे गलत चीजो की लत लग गयी जैसे वीडियो गेम खेलना और दोस्तों के साथ घूमना, कैफे जाना बस इन्ही सब में राहुल का पूरा ध्यान लग गया। और साल के अंत में उसे लगा की उसका पूरा साल निकल गया लेकिन उसने कुछ पढ़ा नहीं। अब उसके पास कुछ ही समय बचा था लेकिन कहते है ना अब पछताये होत क्या जब चिड़ियाँ चुग गई खेत। उसका नीट रिजल्ट आया और उसने इस वर्ष 551 स्कोर किया, राहुल को महसूस हो गया था की यदि वह मेहनत करे तो वह नीट में सफलता हासिल कर सकता है बस उसे सही मार्गदर्शन की आवयश्कता है। लेकिन अब राहुल के अभिभावक दोबारा ड्राप लेने के बिलकुल सपोर्ट में नहीं थे वे चाहते थे की अब राहुल कोई भी प्राइवेट मेडिकल कॉलेज में एडमिशन ले ले , उसके अभिभावक उसे वापस कोटा से घर लेकर चले गए।
लेकिन राहुल तो कुछ और ही चाहता था, वह घर से भाग आया और उसने कोटा आकर मोशन एजुकेशन में एडमिशन ले लिया और अपने अभिभावको को यहाँ आने के बाद बताया। फिर उसने अपनी नीट की तैयारी मोशन के साथ शुरू कर दी। बीच में फिर ऐसा समय आया जहाँ राहुल का ध्यान भटकने लगा लेकिन लगातार मोशन की फैकल्टी के संपर्क में रहने से उसकी पढाई में स्थिरता बनी रही। फिर राहुल मेजर टेस्ट में काफी अच्छा स्कोर करने लगा और धीरे धीरे उसकी पढ़ाई में सुधार आने लगा लेकिन बीच में ही लॉक डाउन हो जाने से फिर उसने पढ़ाई से अपना मन हटा लिया। उसके बाद जब परीक्षा नजदीक थी तो तब राहुल को लगा की मेरा सिलेबस अधूरा रह गया। उसने मोशन की फैकल्टी से बात की। फिर उसे एहसास हुआ की वह उसके लक्ष्य को पाने से बहुत दूर चला गया है और यह उसका आखिरी मौका था जब वह अपने सपने को पूरा कर सकता था क्योकि इसके बाद उसके माता पिता उसे ड्राप लेने नहीं देते।
राहुल बताता है की उसने आखिरी के कुछ दिन ऐसे पढाई की जैसे मानो सब कुछ इस परीक्षा पर टिका हो। वह दिन में 15 से 16 घंटे पढता था जितनी भूख होती उससे आधा खाना खाता था उसने पूरे टाइम अपना फोन बंद रखा सिर्फ और सिर्फ पढाई से मतलब रखा और जब रिजल्ट आया तो उसकी मेहनत रंग लायी। उसने नीट में 680 अंक प्राप्त किये। राहुल ने अपने कदमो की काबिलियत पर विश्वास रखा और मंजिल तक पहुंच के ही दिखाया। उसने यह बात सिद्ध कर दी की यदि आपकी अपने लक्ष्य के प्रति स्थिरता है और आप पूरी निष्ठा के साथ जब आप उस लक्ष्य को पूरा करने में जुट जाते हो तो उस लक्ष्य को हासिल करने से आपको कुछ नहीं रोक सकता।